Saturday, March 25, 2023
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विश्व हिंदू परिषद (विहिप) ने देश में ईशनिंदा के विरुद्ध कड़े कानून को लागू करने की मांग की

नई दिल्ली: वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर शुरू हुआ विवाद के बीच एक नई मांग उठने लगी है। विश्व हिंदू परिषद (विहिप) ने देश में ईशनिंदा के विरुद्ध कड़े कानून को लागू करने की मांग की है। विहिप का कहना है कि इसके लागू होने से किसी भी धर्म का मजाक बनाने वाले डरेंगे और काफी हद तक विवाद शांत हो सकता है। ईशनिंदा का मतलब किसी धर्म या मजहब की आस्था का मजाक बनाना। किसी धर्म प्रतीकों, चिह्नों, पवित्र वस्तुओं का अपमान करना, ईश्वर के सम्मान में कमी या पवित्र या अदृश्य मानी जाने वाली किसी चीज के प्रति अपमान करना ईशनिंदा माना जाता है। ईशनिंदा को लेकर कई देशों में अलग-अलग कानून हैं। कई देशों में तो इसके लिए मौत की सजा तक का प्रवधान है।

20 साल में 12 हजार से ज्यादा लोगों की मौत

प्यू रिसर्च सेंटर के अनुसार, 2019 तक दुनिया के 40 प्रतिशत देशों में ईशनिंदा के खिलाफ कानून या नीतियां थीं। ज्यादातर मुस्लिम देशों में ये कानून लागू है। हालांकि, इस कानून के गलत प्रयोग का आरोप भी लगता रहा है। मुस्लिम देशों में इसके जरिए अल्पसंख्यक हिंदुओं, सिखों, ईसाइयों पर काफी जुल्म होते हैं। डेकन रिलिजियस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस्लामिक देशों में ईशनिंदा के आरोप में पिछले 20 साल में 12 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हुई।

ब्रिटेन ने साल 1860 में लागू किया था ईशनिंदा कानून

ईशनिंदा के खिलाफ सबसे पहले ब्रिटेन ने वर्ष 1860 में कानून लागू किया था। वर्ष 1927 में इसका विस्तार किया गया। इसके बाद कई क्रिश्चियन देशों और फिर इस्लामिक देशों ने इसको लेकर कानून बनाया। अभी अमेरिका के 12, यूरोप के 14, नॉर्थ अफ्रीका के 18, सब सहारन अफ्रीका के 18, एशिया के 17 देशों में ईशनिंदा को लेकर कानून है। 22 देशों में धर्मत्याग के खिलाफ कानून हैं। ये ज्यादातर इस्लामिक देश हैं, जहां लोग अपनी मर्जी से इस्लाम नहीं छोड़ सकते हैं। कुछ देशों में तो ऐसा करने वालों को मौत तक की सजा मिलती है। आगे जानिए किस देश में ईशनिंदा पर क्या सजा मिलती है? यहां ब्रिटिशकाल में ईशनिंदा के खिलाफ बने कानून को ही लागू किया गया था। इसके बाद जिया-उल हक की सैन्य सरकार के दौरान 1980 से 1986 के बीच इसमें और धाराएं शामिल की। ब्रिटिशकाल में बने कानून के तहत ईशनिंदा के मामलों में एक से 10 साल तक की सजा दी सकती थी जिसमें जुर्माना भी लगाया जा सकता था। जिया-उल-हक ने 1980 में पाकिस्तान की दंड संहिता में कई धाराएं जोड़ दी। इन धाराओं को दो भागों में बांटा गया- जिसमें पहला अहमदी विरोधी कानून और दूसरा ईशनिंदा कानून शामिल किया गया।

अहमदी विरोधी कानून 1984 में शामिल गया था। इस कानून के तहत अहमदियों को खुद को मुस्लिम या उन जैसा बर्ताव करने और उनके धर्म का पालन करने पर प्रतिबंध था। ऐसा इसलिए क्योंकि तब मुसलमान अहमदियों को गैर-मुस्लिम मानते थे। 1980 में एक धारा में कहा गया कि अगर कोई इस्लामी व्यक्ति के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी करता है तो उसे तीन साल तक की जेल हो सकती है। 1982 में एक और धारा में कहा गया कि अगर कोई व्यक्ति कुरान को अपवित्र करता है तो उसे उम्रकैद की सजा दी जाएगी। 1986 में अलग धारा जोड़ी गई जिसमें पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ ईशनिंदा के लिए दंडित करने का प्रावधान किया गया और मौत या उम्र कैद की सजा की सिफारिश की गई।

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