Friday, September 22, 2023
Home उत्तराखंड नवरात्रि का पांचवा दिन (स्कंदमाता माता) -जानें पूजा व‍िध‍ि और महत्‍व

नवरात्रि का पांचवा दिन (स्कंदमाता माता) -जानें पूजा व‍िध‍ि और महत्‍व

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नवरात्रि के पांचवें दिन स्कंदमाता माता की पूजा की जाती है। उसके नाम का अर्थ है: ‘स्कंद’ – भगवान कार्तिकेय / मुरुगन और ‘माता’ – माँ। इसलिए, इस नाम का अर्थ है कि वह स्कंद (भगवान कार्तिकेय) की मां हैं।

नवरात्र के पांचवें दिन माँ स्कंदमाता देवी  की पूजा की जाती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार स्‍कंदमाता हिमालय की पुत्री पार्वती हैं, जिन्‍हें माहेश्‍वरी और गौरी के नाम से भी जाना जाता है। मां दुर्गा के इस स्वरूप के नाम के पीछे भगवान कार्तिकेय हैं। दरअसल, भगवान शिव और माता पार्वती के ज्येष्ठ पुत्र कार्तिकेय का एक नाम स्कंद भी है। ऐसे में स्कंदमाता यानी कि कार्तिकेय की माता के रूप में मां दुर्गा की पूजा नवरात्र के 5वें दिन की जाती है। संतानप्राप्ति में बाधाओं को दूर करने के लिए स्कंदमाता की पूजा की जाती है। इससे संतान की बाधाएं दूर होती हैं। चार भुजाओं वाली स्कंदमाता अपनी भुजाओं में भगवान कार्तिकेय, वरमुद्रा और कमलपुष्प को धारण किए हुए हैं। स्कंदमाता कमल के आसन पर विराजमान होती हैं इसलिए उन्हें पद्मासना देवी भी कहा जाता है। पद्मासना देवी का वाहन सिंह है।माता की पूजा से भक्तों को सुख और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। देवी की सच्चे मन से पूजा करने पर मोक्ष की भी प्राप्ति होती है। देवी के इस रूप को अग्नि देवी के रूप में भी पूजा जाता है। जैसा की माँ ममता की प्रतीक हैं। वह अपने उपासक को अपार बुद्धि के साथ-साथ मोक्ष का आशीर्वाद भी दे सकती है। इन्हें अग्नि की देवी भी माना जाता है। चूंकि वह इस रूप में मातृ प्रेम की प्रतिमूर्ति हैं, भक्तों को उनके अपार प्रेम का आशीर्वाद मिलता है।

दंतकथा- पौराणिक मान्यताएँ

मान्यताओं के अनुसार तारकासुर नामक एक राक्षस था जो ब्रह्मदेव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप करता था। एक दिन भगवान उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर उसके सामने प्रकट हो गए। तब उसने उसने अजर-अमर होने का वरदान माँगा। ब्रह्मा जी ने उसे समझाया की इस धरती पर जिसने भी जन्म लिया है उसे मरना ही है। फिर उसने सोचा कि शिव जी तपस्वी हैं, इसलिए वे कभी विवाह नहीं करेंगे। अतः यह सोचकर उसने भगवान से वरदान माँगा कि वह शिव के पुत्र द्वारा ही मारा जाए। ब्रह्मा जी उसकी बात से सहमत हो गए और तथास्तु कहकर चले गए। उसके बाद उसने पूरी दुनिया में तबाही मचाना शुरू कर दिया और लोगों को मारने लगा।

उसके अत्याचार से तंग होकर देवतागण शिव जी के पास पहुँचे और विवाह करने का अनुरोध किया। तब उन्होंने देवी पार्वती से विवाह किया और कार्तिकेय के पिता बनें। जब भगवान कार्तिकेय बड़े हुए, तब उन्होंने तारकासुर दानव का वध किया और लोगों को बचाया।

ज्योतिषीय पहलू (Astrological Aspect)

बुध ग्रह (बुद्ध) पर देवी स्कंदमाता का शासन है। इनकी पूजा करने से बुध के अशुभ प्रभावों का नाश होता है।

कैसे करें पूजा

नवरात्र के पांचवे दिन स्कंदमाता की पूजा की करने के लिए सबसे पहले घर के पूर्वोत्तर दिशा में माता का चित्र स्थापित कर उसका पूजन करें। कांसे के दिए में गाय के घी का दीपक और धूप जलाएं। अशोक के पत्ते चढ़ाने से माता प्रसन्न होती हैं। गौलोचन से तिलक करने के बाद मां को मूंग के हलवे का भोग लगाएं। इसके बाद 108 बार ‘ॐ स्कंदमाता देव्यै नमः’ मंत्र का जाप करें। भोग किसी गरीब को दे दें।

क्या है पूजा मुहुर्त और लाभ

स्कंदमाता का पूजन करने का सबसे सही समय सुबह के 8 बजे से सुबह के 9 बजे तक होता है। अगर आपको अजीविका संबंधी दिक्कत है या फिर आप वाणिज्य या व्यापार से संबंधित हैं तो आपके लिए मां स्कंदमाता की पूजा बहुत लाभदायक है। इसके अलावा मां दुर्गा के स्कंदमाता स्वरूप की पूजा करने से रोगों से निजात मिलता है और परिवार में कलह इत्यादि दूर होते हैं।

इस मंत्र से करें उपासना स्कंदमाता की उपासना के लिए इस मंत्र का जाप करें

स्तुति(hymn)

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ स्कन्दमाता रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

या

सौम्या सौम्यतराशेष सौम्येभ्यस्त्वति सुन्दरी।
परापराणां परमा त्वमेव परमेश्वरी।।

Mantras (मंत्र)

ॐ देवी स्कन्दमातायै नमः॥

Prarthana Mantra (प्रार्थना मंत्र):

सिंहासनगता नित्यं पद्माञ्चित करद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥

ध्यान मंत्र (meditation mantra)

वन्दे वाञ्छित कामार्थे चन्द्रार्धकृतशेखराम्। सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा स्कन्दमाता यशस्विनीम्॥
धवलवर्णा विशुध्द चक्रस्थितों पञ्चम दुर्गा त्रिनेत्राम्। अभय पद्म युग्म करां दक्षिण उरू पुत्रधराम् भजेम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालङ्कार भूषिताम्। मञ्जीर, हार, केयूर, किङ्किणि, रत्नकुण्डल धारिणीम्॥
प्रफुल्ल वन्दना पल्लवाधरां कान्त कपोलाम् पीन पयोधराम्। कमनीयां लावण्यां चारू त्रिवली नितम्बनीम्॥

Stotra (स्त्रोत)

नमामि स्कन्दमाता स्कन्दधारिणीम्। समग्रतत्वसागरम् पारपारगहराम्॥
शिवाप्रभा समुज्वलां स्फुच्छशागशेखराम्। ललाटरत्नभास्करां जगत्प्रदीप्ति भास्कराम्॥
महेन्द्रकश्यपार्चितां सनत्कुमार संस्तुताम्। सुरासुरेन्द्रवन्दिता यथार्थनिर्मलाद्भुताम्॥
अतर्क्यरोचिरूविजां विकार दोषवर्जिताम्। मुमुक्षुभिर्विचिन्तितां विशेषतत्वमुचिताम्॥
नानालङ्कार भूषिताम् मृगेन्द्रवाहनाग्रजाम्। सुशुध्दतत्वतोषणां त्रिवेदमार भूषणाम्॥
सुधार्मिकौपकारिणी सुरेन्द्र वैरिघातिनीम्। शुभां पुष्पमालिनीं सुवर्णकल्पशाखिनीम्॥
तमोऽन्धकारयामिनीं शिवस्वभावकामिनीम्। सहस्रसूर्यराजिकां धनज्जयोग्रकारिकाम्॥
सुशुध्द काल कन्दला सुभृडवृन्दमज्जुलाम्। प्रजायिनी प्रजावति नमामि मातरम् सतीम्॥
स्वकर्मकारणे गतिं हरिप्रयाच पार्वतीम्। अनन्तशक्ति कान्तिदां यशोअर्थभुक्तिमुक्तिदाम्॥
पुनः पुनर्जगद्धितां नमाम्यहम् सुरार्चिताम्। जयेश्वरि त्रिलोचने प्रसीद देवी पाहिमाम्॥

Kavacha Mantra (कवच मंत्र):

ऐं बीजालिंका देवी पदयुग्मधरापरा। हृदयम् पातु सा देवी कार्तिकेययुता॥
श्री ह्रीं हुं ऐं देवी पर्वस्या पातु सर्वदा। सर्वाङ्ग में सदा पातु स्कन्दमाता पुत्रप्रदा॥
वाणवाणामृते हुं फट् बीज समन्विता। उत्तरस्या तथाग्ने च वारुणे नैॠतेअवतु॥
इन्द्राणी भैरवी चैवासिताङ्गी च संहारिणी। सर्वदा पातु मां देवी चान्यान्यासु हि दिक्षु वै॥

नवरात्रि का पाँचवाँ दिन आपके लिए ख़ास होगा और देवी स्कंदमाता की कृपा आपके ऊपर बरसेगी।

चैत्र नवरात्रि की पंचमी की ढेरों शुभकामनाएँ!

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