परमात्म अनुभूति कराते थे ब्रह्मा बाबा!- “डा0 श्रीगोपालनारसन एडवोकेट”
ब्रहमाबाबा जिनका वास्तविक नाम दादा लेखराज था,ने देश ही नही दुनिया को ईश्वरीय अनुभूति का बोध कराया। विकारो से घिरी इस दुनिया को सत्कर्मो के द्वारा संवारने की शुरूआत ब्रह्माबाबा ने सबसे पहले अपनी जन्मभूमि हैदराबाद सिंध जो अब पाकिस्तान में है, से सन 1936 में की थी। परमात्म मिशन चलाने के लिए उन्होंने ओम मण्डली नाम से एक ट्रस्ट बनाकर अपनी समस्त सम्पत्ति जो उस समय भी लाखों रुपयों की थी,उस ट्रस्ट में निहित कर दी थी। इस ट्रस्ट में वे भी कभी ट्रस्टी नही रहे,केवल नारी शक्ति के नेतृत्व को ही उनके द्वारा स्वीकारा गया।यानि नारी शक्ति को इस आध्यात्मिक मिशन का नेतृत्व सौंप कर उन्होंने यह सिद्ध किया कि आधी आबादी भी देश और समाज का ही नही अध्यात्म का भी नेतृत्व कर सकती है।इसी सोच के चलते यह संस्था आज दुनिया के 140 देशों तक नैतिक व आध्यात्मिक मूल्यों की प्रचार प्रसार करने में सफ़ल रही है। 5 मई सन 1950 को पाकिस्तान से भारत के आबू पर्वत पर स्थानान्तरित हुई यह संस्था अब प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के रूप में भारत भूमि से संसार भर को शान्ति का पैगाम देने का काम कर रही है।यह संस्था एक जीवन्त सामाजिक एवं नैतिक मूल्यों की प्रयोगशाला कही जा सकती है।
जिसके माध्यम सें विश्व के नवनिर्माण व चरित्र निर्माण का कार्य बड़ी तेजी के साथ हो रहा है।आज भी मधुरता व वैराग्य के इस अनूठे संगम स्थल पर आकर देश विदेश के आध्यात्मिक जिज्ञासु सहज ही आकर्षित हो जाते है।ब्रहमाकुमारीज संस्था की सोच है कि महान आत्मा बनने के लिए आत्मिक शक्तियों को पहचानने की आवश्यकता है, चूंकि जितना आत्मिक स्थिती का अभ्यास होगा उतनी ही बुद्धिस्थिर और शुद्ध होगी। आत्मिक व आणविक शक्तियों के समन्वय से एक सुखमय व शान्तिमय दुनिया की स्थापना ही ईश्वरीय विश्वविद्यालय का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। तभी तो आत्मा की शक्ति को पहचानने और उसके आत्म शान्त स्वरूप को समझने की सीख यहां बार-बार दी जाती है।यहां आध्यात्मिक व्याख्यान में बताया जाता है कि अब्राहम, पैगम्बर, क्राइस्ट, बुद्ध, महावीर स्वामी और शंकराचार्य धर्मात्माएं तो है किन्तु परमात्मा नहीं। क्योंकि परमात्मा वही है जो अजन्मा हो, निराकार हो, ज्योति स्वरूप हो। मुस्लिम धर्म में भी अल्लाह को नूर कहा गया है। तभी तो अल्लाह को नूर ए इलाही भी कहते है। जो हिन्दूओं के लिए दिव्य ज्योतिबिंदु है। इसी तरह क्राइस्टो के लिए लाईट ऑफ गॉड है। जो एक प्रकाश पुंज की तरह है। हजरत मूसा ने भी परमात्मा को ज्योति स्वरूप स्वीकारा है।
तो गुरूनानक ने भी परमात्मा को एक ओंकार निराकार माना है। यानि धर्म कोई भी हो सबका मानना यही हैं कि ईश्वर, अल्लाह, गौड, वाहे गुरू सतनाम, रूप ज्योति बिन्दु है जो गुणों का सिन्धु है जो सत्यम शिवम सुन्दरम् है और जो पतित से हमें पावन बनाता है उसी परमात्मा से आत्मबोध कराने के लिए राजयोग का श्रेष्ठ मार्ग बताया गया है। ‘परमात्मा’ शब्द की व्याख्या करते हुए बताया गया कि जो सर्वमान्य हो, जन्म मरण से परे हो, जिनके माता- पिता-गुरू न हो, जो स्थिति, गुण, कर्तव्य में सदा परम हो और सर्वज्ञाता व सर्वदाता हो।
दादा लेखराज यानि प्रजापिता ब्रह्मा बाबा शिव परमात्मा के साकार माध्यम ब्रह्मा द्वारा उच्चारे हुए महावाक्यों के आधार पर जिनका आलौकिक और आध्यात्मिक पुनर्जन्म हुआ वे ही ब्रह्मा कुमारी और ब्रह्माकुमार कहलाये गए और उनके द्वारा स्थापित आध्यात्म आधारित शैक्षणिक संस्था को प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय नाम दिया गया।सन 1936 में शुरू हुई इस संस्था ने 1937 में आध्यात्मिक ज्ञान, मूल्य आधारित शिक्षा व सहज राजयोग की शिक्षा देने की दुनियाभर में शुरूआत की थी। इस संस्था की प्रथम मुख्य प्रशासिका ब्रह्माकुमारी जगदम्बा सरस्वती थी। उनके बाद दादी प्रकाशमणि मुख्य प्रशासिका रही और फिर दादी जानकी के 104वर्षीय कन्धों पर इस विशाल संस्था की मुख्य प्रशासिका की जिम्मेदारी का भार तब तक टिका रहा जब तक कि उन्होंने शरीर नही छोड़ दिया।वर्तमान में दादी रतनमोहिनी इस संस्था की मुख्य प्रशासिका है।