Wednesday, March 29, 2023
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उत्तर प्रदेश विधान सभा के 45 विधायकों पर अधिनियम 1951 की धारा 8(1), (2)और (3) के तहत न्यायालय ने किए आरोप तय

उत्तर प्रदेश: एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफार्म और यूपी इलेक्शन वॉच ने उत्तर प्रदेश विधानसभा 2017 के 396 वर्तमान विधायकों के शपथ पत्रों विश्लेषण किया है, इन 396 में से 45 (12 प्रतिशत) ऐसे विधायक है, जिनके ऊपर लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 ( Representation of the People Act, 1951 ) की धारा 8(1), (2) और (3) के तहत आने वाले अपराधों के लिए न्यायालय द्वारा आरोप तय किए गए है। इस रिपोर्ट में निम्नलिखित बातों का विश्लेषण किया गया है।

  • आपराधिक मामलों वाले विधायकों की संख्या जो आर.पी. अधिनियम 1951 (लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम) की धारा 8(1) के अंतर्गत आते हैं, जिन्हें दोषी ठहराए जाने पर अयोग्य घोषित किया जाएगा।
  • आपराधिक मामलों वाले विधायकों की संख्या जो आर.पी. अधिनियम 1951 (लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम) की धारा 8(2) के अंतर्गत आते हैं, जिन्हें कम से कम 6 महीने की सजा के साथ दोषी ठहराए जाने पर आयोग्य घोषित किया जाएगा।
  • आपराधिक मामलों वाले विधायकों की संख्या जो आर.पी. अधिनियम 1951 (लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम) की धारा 8(3) के अंतर्गत आते हैं, जिन्हें 2 साल से कम की सजा के साथ दोषी ठहराए जाने पर अयोग्य घोषित किया जाएगा।

आ.पी. अधिनियम, 1951 (लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम) की धारा 8(1), (2) और (3) के बारे में जनप्रतिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8 में संसद के किसी भी सदन के सदस्य के साथ-साथ विधानसभा या विधान परिषद के सदस्य के रूप में होने और चुने जाने वाले व्यक्तियों के लिए अयोग्यता का प्रावधान है। अधिनियम की धारा 8 की उप-धाराएं (1), (2) और (3) में प्रावधान है कि इनमें से किसी भी उपधारा में उल्लिखित अपराध के लिए दोषी व्यक्ति को दोषसिद्धि की तारीख से अयोग्य किया जाएगा और उसकी रिहाई के छह साल बात तक की अवधि के लिए वह अयोग्य बना रहेगा।

धारा 8(1), (2) और (3) के तहत सूचीबद्ध अपराध गंभीर/भयानक/जघन्य प्रकृति के हैं और भारतीय दंड संहिता, 1860(आईपीसी) के तहत हत्या, बलात्कार, डकैती, लूट, अपहरण, महिलाओं के ऊपर अत्याचार, रिश्वत, अनुचित प्रभाव, धर्म, नस्ल, भाषा, जन्म स्थान के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच शुत्रता जैसे अपराध शामिल हैं। इसमें भ्रष्टाचार और मनी लॉन्ड्रिंग, उत्पादन/विनिर्माण/खेती, कब्जा, बिक्री, खरीद, परिवहन, भंडारण और/या किसी भी नशीली दवा या मनःप्रभावी पदार्थ के सेवन से संबंधित अपराध एफईआरए 1973 से संबंधित अपराध, जमाखोरी और मुनाफाखोरी से संबंधित अपराध, भोजन और दवाओं में मिलावट, दहेज आदि से संबंधित अपराध भी शामिल हैं। इसके अलावा, धारा 8 में उन सभी अपराधों को भी शामिल किया गया है जहां एक व्यक्ति को दोषी ठहराया जाता है और कम से कम दो साल के कारावास की सजा सुनाई जाती है।

आपराधि मामले घोषित करने वाल विधायक दलवार जिनके ऊपर आर.पी. अधिनियम 1951 की धारा 8(1), (2) और (3) के तहत आरोप तय किए गए हैं।

  •  45 विधायकों ने आपराधिक मामले घोषित किए हैं, जिनके ऊपर आर.पी. अधिनियम 1951 की धारा 8(1), (2) और (3) के तहत आरोप तय किए गए हैं।
  •  दलों में बीजेपी के सबसे अधिक 32 विधायकों, इसके बात एसपी के 5 और बीएसपी और अपनादल (एस) प्रत्येक के 3 विधायकों ने अपने ऊपर आपराधिक मामले घोषित किए हैं, जिनके ऊपर आर.पी. अधिनियम 1951 की धारा 8(1), (2) और (3) के तहत आरोप तय किए गए है।
  •  45 विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामले लंबित रहने की औसत संख्या 13 वर्ष है।
  •  32 विधायकों के खिलाफ दस साल या उससे अधिक समय से कुल 63 आपराधिक मामले लंबित हैं।

वर्तमान विधायकों का पूर्ण विवरण जिनके ऊपर आ.पी. अधिनियम, 1951 की धारा 8(1), (2) और (3) के तहत आने वाले अपराधों के लिए न्यायालय द्वारा आरोप तय किए गए हैं और जिन पर 20 से अधिक वर्षों से मामले लंबित हैं। जिनमें पहले स्थान पर बीजेपी के मरिहन निर्वाचन क्षेत्र से रमाशंकर सिंह दूसरे स्थान पर बीएसपी के मऊ से मुख्तार अंसारी तीसरे स्थान पर बीजेपी के धामपुर से अशोक कुमार राना हैं।

एडीआर द्धारा अवलोकन

10 अगस्त 2021 को भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने 13 फरवरी 2020 और 25 सितंबर 2018 के सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों का पालन नहीं करने के लिए बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में चुनाव लड़ने वाले 10 राजनीतिक दलों को दंडित किया, जिन्होंने राजनीतिक दलों को निर्देश दिया था कि वे अपने सोशल मीडिया प्लेटफॅार्म सहित अपनी वेबसाइट पर 72 घंटों के भीतर आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों के चयन करने के कारणों को सूचीबद्व करें। नरम रूख अपनाते हुए राजनीतिक दलों पर , रू 1लाख से 5 लाख का जुर्माना लगाया गया क्योंकि राजनीतिक दल सर्वोच्च न्यायालय और अन्य मुख्य हितधारकों के बार-बार याद दिलाने के बावजूद सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों का पालन करने में विफल रहे थे। वास्तव में चुनाव जीतने के अपने एकमात्र उदेश्य के साथ, राजनीतिक दलों ने जानबूझकर आपराधिक पृष्ठभूमि वाले ऐसे दागी उम्मीदवार को मैदान में उतारा था और प्रतिभा, सत्यनिष्ठा, योग्यता और उपलब्धियों जैसे सहभागी लोकतंत्र में आवश्यक महत्वपूर्ण साख की अनदेखी की गयी थी।

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