Wednesday, March 29, 2023
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उनके जाने से सूना हुआ कथक का आंगन

16 जनवरी, 2022 की रात करीब बारह-सवा बारह बजे का वक्त। दिल्ली के अपने घर में पंडित जी अपनी दो पोतियों रागिनी और यशस्विनी के अलावा दो शिष्यों के साथ पुराने फिल्मी गीतों की अंताक्षरी खेल रहे थे। हंसते-मुस्कराते, बात-बात पर चुटकी लेते पंडित जी को अचानक सांस की तकलीफ हुई और कुछ ही देर में वह सबको अलविदा कह गए। आगामी 4 फरवरी को 84 वर्ष के होने वाले थे। बेशक उन्हें कुछ वक्त से किडनी की तकलीफ थी, डायलिसिस पर भी थे, लेकिन उनकी जीवंतता और सकारात्मकता अंतिम वक्त तक बरकरार थी।

पंडित जी में आखिर ऐसा क्या था जो उन्हें सबका एकदम अपना बना देता था?

कथक को दुनियाभर में एक खास मुकाम और पहचान दिलाने वाले पंडित जी आखिर कैसे एक संस्था बन गए थे और कैसे उन्हें नई पीढ़ी भी उतना ही प्यार और सम्मान देती थी ? इसके पीछे थी उनकी कभी न टूटने वाली उम्मीद। कुछ साल पहले उनके साथ हुई मुलाकात के दौरान ऐसी कई यादगार बातें पंडित जी ने कहीं। वे कहते– कथक और शास्त्रीय नृत्य का भविष्य उज्ज्वल है, इसकी संजीदगी और भाव-भंगिमाएं आपको बांध लेती हैं। नई पीढ़ी को इसकी बारीकी समझ में आ रही है और बड़ी संख्या में देश-विदेश में बच्चे कथक सीख रहे हैं। वह यह भी बताते थे कि कैसे कथक मुगलों के ज़माने से सम्मान पाता रहा, भारतीय नृत्य और संगीत की परंपरा कितनी पुरानी है और कैसे उनके वंशज आसफुद्दौला से लेकर नवाब वाजिद अली शाह के दरबार में राज नर्तक और गुरु थे। उनके दादा कालिका महाराज और उनके चाचा बिंदादीन महाराज ने मिलकर लखनऊ के कालिका-बिंदादीन घराने की नींव रखी।

पंडित बिरजू महाराज

बातचीत में अक्सर पंडित जी अपने पिता अच्छन महाराज के अलावा अपने चाचा लच्छू महाराज और शंभु महाराज का जिक्र करते थे। तीन साल के थे तभी पिता अच्छन महाराज ने उनमें ये प्रतिभा देखी और नृत्य सिखाने लगे। नौ साल के होते-होते पिता का साया उठ गया तो चाचा लच्छू महाराज और शंभु महाराज ने उन्हें शिक्षा दी। एक दिलचस्प किस्सा भी पंडित जी ने बताया था कि जिस वार्ड में उनका जन्म हुआ, उसमें उस दिन वे अकेले बालक थे, बाकी लड़कियां। सबने तभी कहा कि कृष्ण-कन्हैया आया है साथ में गोपियां भी आई हैं। ऐसे में नाम रखा गया बृजमोहन, जो बाद में बिरजू हो गया।

अपने जीवन से जुड़े ऐसे कई दिलचस्प किस्से पंडित जी सुनाया करते थे। वह यह भी कहते कि नर्तक सिर्फ नर्तक नहीं होता, उसे सुर की समझ होती है, संगीत उसके रग-रग में होता है। संगीत और नृत्य को कभी अलग करके देखा ही नहीं जा सकता। इसलिए पंडित बिरजू महाराज बेहतरीन गायक भी थे, शानदार तबलावादक भी थे और तमाम तरह के तार और ताल वाद्य वे बजा लेते थे। अपने घराने की खासियत पंडित जी कुछ इस तरह बताते थे– बिंदादीन महाराज ने करीब डेढ़ हजार ठुमरियां रचीं और गाईं, कथक की इस शैली में ठुमरी गाकर भाव बताना इसी शैली में आपको मिलेगा। तत्कार के टुकड़ों ‘ता थई, तत थई को’ भी कई शैलियों और तरीकों से नाच में उतारा जाता है।

पंडित बिरजू महाराज

कथक के तकनीकी पहलुओं पर आप उनसे घंटों बात कर सकते थे। नृत्य में आंखों का इस्तेमाल, भाव-भंगिमाएं और पैरों की थिरकन और हाथों की मूवमेंट के बारे में उनसे बैठे-बैठे बहुत कुछ समझ सकते थे। एक खास बात और जो वह बार-बार कहते थे कि नृत्य को कभी लडक़ा या लडक़ी की सीमा में बांध कर नहीं देखना चाहिए। ये सोच बदलनी चाहिए कि शास्त्रीय नृत्य सिर्फ लड़कियों के लिए है। जिसके अंदर लचक है, सुर की समझ है, संवेदनशीलता है, भाव-भंगिमाएं हैं वह नाच सकता है। शायद इसी लिए पंडित बिरजू महाराज को एक संस्था कहा जाता है।

पंडित जी ने कई नृत्य शैलियां भी विकसित कीं और नए-नए प्रयोग किए। चाहे वह माखन चोरी हो, मालती माधव हो या फिर गोवर्धन लीला। इसी तरह उन्होंने कुमार संभव को भी उतारा और फाग बहार की रचना की। मात्र तेरह साल के थे तभी दिल्ली के संगीत भारती में नृत्य सिखाने लगे थे। भारतीय कला केन्द्र से लेकर कथक केन्द्र तक वह लगातार संगीत और नृत्य की शिक्षा देते रहे। 1998 में कथक केन्द्र से रिटायर होने के बाद पंडित जी ने दिल्ली के गुलमोहर पार्क में अपना केन्द्र खोला– कलाश्रम कथक स्कूल। देश-विदेश में पंडित जी ने हजारों प्रस्तुतियां दीं। कोई भी संगीत और नृत्य समारोह पंडित बिरजू महाराज के बगैर खाली खाली-सा लगता था। स्पिक मैके के तमाम आयोजनों में नए बच्चों के बीच अक्सर पंडित जी घुल-मिलकर बातें करते और कथक के बारे में बताते।

पद्मविभूषण से नवाजे जाने से पहले पंडित जी को संगीत नाटक अकादमी सम्मान और कालीदास सम्मान समेत तमाम प्रतिष्ठित मंचों पर सम्मानित किया गया। लेकिन वह हमेशा यही कहते कि हमारा सबसे बड़ा सम्मान लोगों का प्यार है। फिल्म देवदास के मशहूर डांस सीक्वेंस काहे छेड़े मोहे… के बारे में बात करते हुए वह माधुरी दीक्षित को एक बेहतरीन कलाकार बताते थे। वे कहते थे कि माधुरी को इस नृत्य में जो भाव-भंगिमाएं और आंखों की अदा हमने एक-दो दफा बताई और उन्होंने इसे लाजवाब तरीके से कर दिखाया। बाद में उन्होंने दीपिका पादुकोण की फिल्म बाजीराव मस्तानी के मशहूर डांस सीक्वेंस का निर्देशन किया – मोहे रंग दो लाल। शतरंज के खिलाड़ी में भी पंडित जी के दो डांस सीक्वेंस थे। ऐसी फेहरिस्त बहुत लंबी है।

जाहिर है पंडित जी का जाना कथक और भारतीय शास्त्रीय संगीत और नृत्य परंपरा के लिए एक गहरे सदमे की तरह है। बेशक उनके काम को उनकी अगली पीढिय़ां आगे बढ़ाती रहेंगी और कथक को लेकर उनके भीतर जो जुनून था वह बरकरार रहेगा। लेकिन पंडित जी जैसा भला कोई और कैसे हो सकता है।

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