घाटी का नाम वैलि ऑफ फ्लावर्स (Valley Of Flowers) कैसे पड़ा और इस जगह को किसने खोजा ??
‘फूलों की घाटी’ को ढूंढने का श्रेय पर्वतारोही फ्रैंक स्मिथ (Frank Smith) को जाता है। यह घटना वर्ष १९३१ (1931) को तब घटी जब प्रसिद्ध ब्रिटिश पर्वतारोही फ्रैंक स्मिथ अपने दल के साथ गढ़वाल में स्थित कामेट शिखर पर आरोहण करने के लिए पहुँचे। कामेट शिखर पर चढ़ने के बाद कुछ का मानना है की वे बद्रीनाथ की ओर जा रहे थे तो उन्हे यहाँ फूलों की घाटी के दर्शन हुए, और कुछ का मानना है की कामेट शिखर पर चढ़ने के बाद वे दल के साथ नीति घाटी में धौली गंगा के निकट गमशाली गाँव पहुँचे। रास्ता भटक जाने के बाद वे पश्चिम की ओर बढ़ते भ्यूंडार घाटी में पहुँचे। कुछ आगे बढ़ने पर उन्हें फूलों की घाटी के दर्शन हुए। जिसको देख वे भावविभोर और मंत्रमुग्द हो गए जिसके पश्चात उन्होने अपना तम्बू ही इस अद्धभुत, सौंदर्यमई घाटी में तान दिया।
१९३७(1937) में वे दुबारा इस घाटी में पहुँचे। उन्होनें यहाँ व्यापक सर्वेक्षण कर पुष्पों व वनस्पति प्रजातियों की करीब ढाई हज़ार किस्में ढूंढ निकाली, जिनमें से वे ढाई सौ किस्म के बीज वे अपने साथ विदेश ले गए। जाने के बाद उन्होनें वहाँ “द वैलि ऑफ फ्लावर्स”(The Valley Of Flowers) पुस्तक लिखी। पुस्तक प्रकाशित होते ही देश विदेश में मशहूर व परिचित हो गई। फूलों की घाटी, पूरी दुनियाँ का ध्यान इसकी ओर आ गया। विदेशी पर्यटक, जिज्ञासु व शोधार्थी घाटी में आने लगे। वर्ष १९३९(1939) में लंदन से एक युवती जान मारग्रेट लैग फूलों का अध्ययन करने यहाँ पहुँची दुर्भाग्य से ४(4) जुलाई के दिन वह चट्टान से फिसलकर गिर गई और इस घाटी में सदा के लिए सो गई। उसकी याद में आज भी घाटी के बीच में एक स्मारक बनाया गया है।
फूलों की घाटी सीमांत चमोली जनपद में बद्रीनाथ धाम के निकट नर और गंध मादन पर्वतों के बीच स्थित है। गोविंद घाट से घांघरिया तक हेमकुंड (Hemkund) व फूलों की घाटी का एक ही मार्ग है। घांघरिया से हेमकुंड (Hemkund) 6 किलोमीटर व फूलों की घाती 3 किलोमीटर ऊंचाई पर है। घाटी में पुष्पावती नदी बहती है जो की कामेट पर्वत (पुष्पतोया ताल) से निकलती है। यहाँ का मुख्य आकर्षण हजारों किस्म के फूल और दुर्लभ जन्तु हैं। इसका क्षेत्रफल ८७.५ (87.5) किलोमीटर है और मुख्यालय जोशीमठ है फूलों की घाटी को स्कंदपुराण में नंदनकानन कहा गया है नवम्बर से मई तक घाटी में बर्फ का साम्राज्य रहता है। जून में बर्फ पिघल कर यहाँ हरियाली छा जाती है। फूलों के पौंधे बढ़ने लगते हैं। अगस्त में घाटी में फूलों का यौवन सर्वाधिक दर्शनीय व आकर्षक हो जाता है अक्टूबर में धीरे-धीरे फूल सिकुड़ जाते हैं।
यहाँ अनेक दर्शनीय पुष्प-पदम पुष्कर, पुष्प प्रिमुला, नीली पापी, विष कंडार, ब्रह्मकमल, वत्सनाम, शालमपंजा, हिमकमल तथा अनेक औषधीय पुष्प यथा- रुद्रदंती, शिवधतूरा, कूट, सोम, रतनजोत, ममीरी, निर्विषी और जटामासी मिलते हैं। फूलों की घाटी को सरंक्षण व जैव विविधता संवर्द्धन के लिए भारत सरकार द्वारा 6 नवम्बर १९८२(1982) को राष्ट्रीय उद्यान( National Park) घोषित कर दिया और 14 जुलाई २००५(2005) को युनेस्को ने इसे विश्व विरासत (World Heritage) की श्रेणी में सम्मिलित कर लिया।
अब यदि फ्रैंक स्मिथ फूलों की घाटी में आते तो वे घनी जंगली झड़ियों और घास में ही फस कर रह जाते और फूलों के कदाचित ही दर्शन कर पाते। आज उस खूबसूरत घाटी से फूलों की चादर और महकती बहार अब गायब होते जा रही है और घनी जंगली झारियों व घास तेजी से बढ़ता-फैलता जा रहा है। रोशनी और खुलेपन से वंचित इनके नीचे जमीन पर खिलने वाले फूल एक-एक करके दम तोड़ रहे हैं।